Dollar to Rupee Rate: डॉलर और रुपयों के बिच का विनिमय दर न की सिर्फ एक महत्वपूर्ण संकेत होता है बल्की यह पुरे देश के व्यापार और निवेश पर असर डालता हैं। देश की अर्थव्यवस्था को गहराई से यह असर करता है। लेकिन क्या आपको पता है की डाॅलर और रूपयों का रेट कैसे तय होता और हमे रोज इसकी किंमतो में भिन्नता कैसे दिखती है? Dollar Rupees Rate कौन तय करता हैं? नहीं पता ना ? दरअसल यह प्रक्रिया काफी जटिल है और यह आर्थिक और बाजार संबंधीत बहुतसारे फैक्टर्स सामिल होते हैं, इस आर्टिकल में हम डाॅलर और रूपयों का पुरा विनिमय का गणित सिखेंगे तो चलिये जानते हैं इसके बारे में पुरी जानकारी इस आर्टिकल में।

विनिमय दर क्या होता हैं? (Exchange Rate)
विनिमय दर (Exchange Rate) दो प्रकार के अलग-अलग मुद्राओ के बीच की किमत होती हैं। यह बताता है की हमें एक मुद्रा को खरिदने के लिये दुसरीवाली कितनी मुद्राओ की आवश्यकता होगी।
उदाहरण- अगर यदी अभी 1 कमेरिकन डाॅलर (USD) की किंमत 83 रुपये (INR) हैं तो यह विनिमय दर
1 USD = 100 INR हो गया।
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रुपये और डाॅलर के बीच विनिमय दर कैसे तय होता हैं?
इसमें बहुत सारे फैक्टर्स सामिल होते हैं चलिये देखते इसमे शामिल होनेवाली प्रमुख बातें।
1. मांग और आपूर्ति (Demand & Supply): विनिमय दर में सबसे महत्वपूर्ण कारक यही यानी मांग और आपूर्ती होता हैं। समझें यदी डाॅलर की मांग अधिक हैं और आपुर्ती कम है तो डाॅलर की किंमत बढ़ जायेगी। इसका उल्टा अगर यदी डाॅलर की आपूर्ती अधिक हैं और मांग कम तो रुपया मजबुत होगा।
मांग कब बढ़ती हैं?
- भारत आयात (Import) अधिक होगा।
- जब विदेशी निवेशक (Foreign Investors) भारतीय बाजार से निवेश किया गया पैसा निकालते हैं।
- जब भारतीय कंपनीयों को विदेशी कर्ज (Foreign Dept) चुकाना होता हैं।
आपूर्ति कब बढ़ती हैं?
- जब भारत निर्यात (Export) अधिक करता हैं।
- जब विदेशी निवेशक भारतीय मार्केट। में निवेश करते हैं।
- जब एनआरआई (NRI) भारत में पैसा भेजते है।
2. विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves):
भारतीय रिज़र्व बैंक देश के विदेशी भंडार मुद्रा को मैनेज करती हैं। यदी अगर रुपया कमजोर हो रहा है, तो RBI डाॅलर बेचकर रुपये की किंमत को स्थिर करने की कोशिश करता हैं। इसके विपरित यदी रुपया मजबूत हो रहा हैं, तो RBI डॉलर खरिदकर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाती हैं।
3. ब्याजदर (Intrest Rate):
ब्याज दरें भी एक प्रकार से Exchange Price / Rate पर प्रभाव डालती हैं। अगर भारत में ब्याजदर अधिक हैं, तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करने के लिये आकर्षित होंगे। इससे डाॅलर की आपूर्ती बढ़ेगी और रुपया मजबूत बनेगा।
4. मुद्रास्फीति (Inflation):
मुद्रास्फीति का सीधा प्रभाव विनिमय दरो पर पड़ता हैं। यदी भारत में मुद्रास्फीति अधिक हैं तो रुपयों की क्रयशक्ति (Purchasing Power) कम हो जायेगी और डाॅलर के मुकाबले रुपया कमजोर होगा।
5.आर्थिक विकास (Economic Growth):
हमारे देश की इकोनोमिक ग्रोथ भी विनिमय दरो पर असर डालती हैं। अगर भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही हैं तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करेंगे, जिससे रुपया मजबूत होगा।
6. वैश्विक घटनायें (Global Events):
वैश्विक घटाणाये जैसे युद्ध, महामारी या तेल की किंमतो में उतार-चढ़ाव भी विनिमय दरो को प्रभावित करते हैं।
उदाहरण- अगर यदी किसी कारण तेल की किंमते बढ़ती है तो हमें उसके लिये डाॅलर देकर खरिदना होता है जिससे रुपया कमजोर होता हैं।
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विनिमय दरो का गणित
विनिमय दरो का गणित मुख्य रुप से मांग और आपूर्ति (Demand and Supply) पर होता हैं। यह एक गतिशील प्रकिया हैं। इसे नीचे दिये गये फाॅर्मुले से समझे,
विनिमय दर= (डाॅलर की मांग/ डाॅलर की आपूर्ती) ×बाजार की स्थिती
उदाहरण के लिये समझे, यदी भारत में डाॅलर की मांग 1000 करोड़ की हैं और आपुर्ती 800 करोड़ की ही है तो डाॅलर की मांग बढ़ेगी और रुपया कमजोर होगा।
Year | Approximately USD to INR Exchange Rate |
1950 | 4.76 |
1960 | 4.76 |
1970 | 7.50 |
1980 | 6.61 |
1990 | 17.01 |
2000 | 44.31 |
2010 | 46.02 |
2020 | 74.31 |
2024 | 85+ |
विनिमय दर को प्रभावित करनेवाले बाकी घटक
- विदेशी निवेश(Foreign Investment)- एफडीआई (FDI) और एफटीआई (FPI) जैसे विदेशी निवेश भी विदेशी निवेश भी विनमय दरो को प्रभावित करते हैं।
- सरकारी नीतिया (Goverment Policy)- सरकार बदलने पर या स्थिर सरकार नही होने पर आपने अक्सर देखा होगा की शेयर मार्केट में उथल-पुथल होती हैं यही कारण है की इसका भी विनिमय दरो में बहुत महत्वपूर्ण भुमिका होती है। उदाहरण के तौर पर, यदी सरकार आयात शुल्क (Import Duty) बढाती हैं, तो आयात कम होगी और रुपया मजबूत होगा।
- व्यापार घाटा (Trade Deficit)- यदि भारत का आयात निर्यात से अधिक होता है, तो व्यापार में घाटा बढ़ेगा और रुपयों में गिरावट दिखेंगी।
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निष्कर्ष
डाॅलर और रुपये का रेट तय करने में आर्थिक और बाजार संबंधित कारक फैक्टर्स मौजुद होते हैं। मांग-आपूर्ति, विदेशी मुद्रा भंडार, मुद्रास्फीति, ब्याज दर और वैश्विक घटणाये इसमें शामिल होती हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया हैं, जिसे समजने के लिये आर्थिक ज्ञान और बाजार की समझ आवश्यक हैं।
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FAQ
प्रश्न: रुपयों की तुलना में डाॅलर की किंमत क्यु बढ़ती हैं?
उत्तर- रुपयों के मुकाबले डाॅलर की किंमत तब बढ़ती है जब डाॅलर की मांग अधिक होती है और आपूर्ति कम। यह आयात, विदेशी निवेश और वैश्विक घटनाओ पर निर्भर करता।
प्रश्न: RBI रुपये को कैसे स्थिर रखता है?
उत्तर- RBI अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डाॅलर बेचकर या खरिदकर बाजार की Demand और Supply को नियंत्रित करता हैं।
प्रश्न: तेल की किंमतो का रुपयों पर कैसे असर पड़ता हैं?
उत्तर- हम जो भी जादातार तेल अरब देशों से आयात करते हैं उसका भुगतान डाॅलर के माध्यम से हम करते हैं। तेल की किंमते बढ़ने से डाॅलर की मांग बढ़ती है और रुपयों पर दबाव पढता हैं।
प्रश्न: रुपयों की किंमते बढ़ने से क्या फायदा होता हैं?
उत्तर- रुपयों की किंमत बढ़ने से आयात करना सस्ता होता हैं, विदेशी यात्रा आसान होती हैं और विदेशी कर्ज चुकाना सस्ता पड़ता हैं।
प्रश्न: क्या डाॅलर और रुपयों की दरों को नियंत्रित किया जा सकता हैं?
उत्तर- नहीं एक लिमिट तक RBI हस्तक्षेप से यह नियंत्रित कर सकती हैं। फ्लोटिंग रेट सिस्टिम में बाजार की शक्तियां इसे तय करती हैं
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