
Stock Market Crash: अगर आप शेयर बाजार में कोविड दौर या उसके बाद में निवेश करना शुरु करे हो और आपने पहिले बार ऐसे मार्केट की गिरावट देखी है तो आपको इससे पहले भी 8 बार मार्केट क्रैश हुआ था उसको भी जानना होगा। यह मार्केट की गिरावट पहली बार नहीं है यह इससे पहले कई बार हुआ है और शेयर मार्केट पहले से जादा तेजी से भागा हैं। चलिये जानते हैं मार्केट क्रैश की अनसुनी कहानीया और देखते हैं उससे हमें क्या सीख मिलती हैं।
1.हर्षद मेहता घोटाला (1992)
अगर कोई शेयर मार्केट का घोटाला बोलता है तो सबसे पहले हर्षद मेहता का ही नाम सबकी जुबान पर आता हैं। हर्षद मेहता एक स्टाॅक ब्रोकर थे। दरअसल, उन्होंने धोकाधाडी के फंड का इस्तमाल करके शेयरों की किंमतो में हेराफेरी की थी। इसके बाद शेयर मार्केट में सेंसेक्स लगभग 56% टुटा था।
तब साल 1992 में सेंसेक्स 4,467 से गिरकर एप्रिल 1993 तक 1,980 पर आ गया था। इस गिरावट के बाद शेयर बाजार को संभालने को 2 साल लगे थे।
इससे हमें सीख मिलती है की अभी भी बिना शोध के कोई टिप्स पर भरोसा ना करें। कंपनी की फंडामेंटल्स पर ध्यान दें।
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2.डाॅट काॅम बबल फटना (2000)
साल 2000 में शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली थी। फरवरी 2000 में सेंसेक्स 5,937 से गिरकर अक्टूबर 2001 तक 3,404 तक आ गया था। यह लगभग 43 प्रतिशत की गिरावट थी। इस साल निवेशको का ध्यान टेक से हटकर दूसरे क्षेत्रो में केंद्रीत करने के बाद मार्केट में धीरे धीरे सुधार हुआ था।
टेक कंपनीयों की अत्याधुनिक मुल्याकंन के बाद या गिरावट दर्ज की गई थी। आयटी सेक्टर में बहुत भारी गिरावट दर्ज की गई थी।
इस गिरावट से हमें सीख मिलती है की कभी भी ट्रेंड के पिछे मत भागे कंपनी के बिजनेस माॅडेल और आय को समझें।
3.केतन पारेख स्कैम (2001)
केतन पारेख द्वारा छोटे स्टाॅक के मुल्य में हेराफेरी की गई थी। इससे मिडकैप शेयरों में 50-70 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिली थी। यह भी हर्षद मेहता की तरह ही एक बड़ा घोटाला माना जाता हैं। जिसने निवेशक और बाजारों की विश्वसनीयता को गंभीर रुप से प्रभावित किया। यह घोटाला शेयर बाजार में हेराफेरी और मुल्यों को हेराफेरी करने का एक बड़ा उदाहरण हैं।
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4. चुनाव परिणाम (2004)
साल 2004 में यूपीए गठबंधन की अप्रत्याशित जीत ने निवेशकों में घबराहट पैदा कर दी थी। 17 मई, 2004 को को सेंसेक्स में 15 प्रतिशत की बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी। जिससे बाजार की तेजी के गिरावट के कारण बाजार को रोक दिया गया था। लेकिन बाद में चुनाव के परिणाम खत्म होने के बाद 2-3 हफ्तों के अंदर ही बेंचमार्क इंडेक्स संभल गया था।
5. वैश्विक वित्तीय संकट (2008)
अमेरिका के लेहमैन ब्रदर्स के पतन और सबप्राइम माॅर्गेज संकट ने वैश्विक मंदी को जन्म दिया था। जनवरी 2008 में 21,206 यानी अपने शिखर से अक्टूबर 2008 तक सेंसेक्स 60% से गिरकर 8,160 पर आ गया था। लेकिन सरकार को प्रोत्साहन उपायों और वैश्विक तरलता ने साल 2009 तक वापसी में मदत की थी।
इससे हमें सीख मिलती है की वैश्विक आर्थिक घटणाये भी भारत को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। इसलिये इमरजेंसी फंड और डायवर्सिफिकेशन जरुरी हैं।
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6. चायना मार्केट क्रैश और मुल्याकन (2015)
चीन के आर्थिक मंदी, युआन मूल्यांकन और घरेलू एनपीए बढ़ने से बाजार में गिरावट आई थी। फरवरी 2016 में सेंसेक्स 26% तक गिरा था।
उभरते बाजार प्रमुख अर्थस्थितीओ से प्रभावित होते हैं। निवेशकों को वैश्विक आर्थिक संकेतको पर नजर रखनी चाहिये।इतनी बड़ी गिरावट के बाद भी भारतीय शेयर बाजार 12-14 महिनों के भीतर ठीक हो गया था।
7.नोटबंदी और जीएसटी का प्रभाव (2016)
8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घौषणा से नकदी संकट और बाजार में भय की स्थिती पैदा हुई थी। जिससे नवंबर को सेंसेक्स 6% तक गिरा था।
घरेलू नीतिगत निर्णय बाजार में अस्थिरता पैदा करते हैं। निवेशकों को संभावित प्रभाव को समझना चाहिये।
इस साल जीएसटी के लागु होने से अर्थव्यवस्था में ठहराव भी देखने को मिला था। इसकी वजह से सेंसेक्स में अस्थिरता आई थी और छोटे व्यवसायों को बुरी तरह प्रभावित किये थे।
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8. कोविड 19 के आने से गिरावट (2020)
कोविड 19 की महामारी के कारण दुनियाभर में लाॅकडाऊन और आर्थिक अनिश्चितता के कारण मार्च 2020 में शेयर बाजार में गिरावट आई थी।
सेंसेक्स में 39 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इस साल 2020 में मार्केट 42,273 से गिरकर मार्च 2020 तक 25,668 पर आया था।
इससे हमें यह सबक मिलता है की कभी भी अप्रत्याशित घटनाएं जैसे माहामारी शेयर बाजार में भारी गिरावट ला सकती हैं। आपातकालीन योजना और तरलता बनाए रखना महत्वपूर्ण होता हैं।
निष्कर्ष
अगर आप पहले से निवेशक है अथवा नये है आपको इन ऐतिहासिक क्रैश से सीख लेनी चाहिये। विविधीकरण दिर्घकालिन दृष्टिकोण और सुचित निर्णय लेने पर ध्यान देना चाहिये। बाजार की अस्थिरता अपरिहार्य है, लेकिन अगर हम सही रणनीतियों के साथ, निवेशक अपनी वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे।
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FAQ
प्रश्न: भारतीय शेयर बाजार कितनी बार क्रैश हुआ है?
उत्तर- भारतीय शेयर बाजार प्रमुख रुप से 8 बार क्रैश हुआ हैं। इनमें 1992 का हर्षद मेहता स्कैम, 2000 का डॉट कॉम बबल, 2008 का ग्लोबल फाइनेशियल क्राइसिस, और 2020 का कोविड-19 क्रैश जैसी प्रमुख घटनाएं शामिल है।
प्रश्न: शेयर बाजार क्रैश होने के प्रमुख कारण क्या रहे हैं?
उत्तर- आर्थिक मंदी, राजनैतिक घटणाये एवं जिओपाॅलिटिकल घटणाये, निवेशको का अधिक लालच अथवा डर, बड़े घोटाले अथवा नियमों का उलंघन आदी कारण शेयर मार्केट क्रैश होने के लिये ज्यादातर कारणीभुत रहे हैं।
प्रश्न: क्या क्रैश के बाद मार्केट रिकवर करता हैं?
उत्तर- हां, अगर इतिहास को उठाकर देखें तो हर क्रैश के बाद बाजार में रिकवरी हुई है।
1. साल 2008 में सेंसेक्स 8,000 अंक बढ़कर 60,000 तक पहुंच गया।
2.साल 2020 के कोविड के गुजर जाने के बाद मार्केट दुगनी तेजी से रिकवर कर गया था।
प्रश्न: मार्केट क्रैश से हम क्या सीख सकते हैं।
उत्तर- मार्केट क्रैश के पिछले इतिहास को देखें तो हमेशा धैर्य रखना, रिसर्च करना, पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइड करना, लालच से बचना और हमेशा एमरजेंसी फंड रखना जैसे आदी चीजें सीख सकते हैं।
प्रश्न: क्रैश मार्केट के वक्त क्या करना चाहिये?
उत्तर- घबराये नही चाहिये, भावनात्मक निर्णय तो कतई ना ले, पोर्टफोलियो को हमेशा डायवर्सिफाइड रखें, लाॅग टर्म निवेश का नजरिया रखें, अच्छे शेयरों को कम किंमतो में बटोरना शुरु करे।
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